Saturday 28 January 2012

आज धुप में कुछ नमी सी है |



Penned these lines when i felt the quintessential warmth of sun was somehow missing in today morning's sunlight...i don't know should i extend it or not..*confused*




आज  धुप में  कुछ  नमी सी है |


प्रथम किरण के आगमन ने पूर्व क्षितिज से सूर्य की उद्घोषणा की है ,
धुंध की परत को चीरती हुई उषा ने जिंदगी को एक नई प्रेरणा दी है ,
पक्षियों की  कूजन ने  रात्रि  के  मौन  की  अवहेलना की है |


परन्तु, सूक्ष्मता से देखो, इस भोर में मालूम होती कुछ कमी सी है ,
तपन के अभाव से यह सूरज की जो लौ है,वह भी लगती आज धीमी सी है,
दो जोड़ी कपड़ो में ठिठुरती वो भिकारन मंदिर के कोने में बैठी सहमी सी है,


हाँ! आज धुप में कुछ नमी सी है|





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